अनुभूति में
सुधीर कुशवाह
की रचनाएँ-
अंजुमन में-
झूठ बातों का सदा प्रतिवाद
दूसरों के वास्ते भी
पर्वतों से घाटियों से
फूल जितने भी हमारे पास |
' |
पर्वतों से घाटियों से
पर्वतों से घाटियों से यूँ नदी निकली
मुश्किलों से दोस्त जैसे जिंदगी निकली।
आज कितनी खोज की विज्ञान ने लेकिन
इसकी हर इक खोज से भी त्रासदी निकली।
बिन तुम्हारे साँस लेना भी लगा मुझको
जैसे हर एक साँस के संग इक सदी निकली।
दिल के अंदर के दिये जलने लगे जिस पल
बस उसी पल दिल से अपने रोशनी निकली।
दर्द का सम्राट बनता है जो जीवन में
उसके होठों से ही सच्ची बांसुरी निकली।
१६ जुलाई २०१२ |