अनुभूति में
डॉ. शिवशंकर मिश्र
की रचनाएँ—
अंजुमन में--
क्यों कभी
दिन बुरे आते हैं
माफ कर दो, भूल जाओ
हारते ही आए
|
|
हारते ही आए
हारते ही आए लेकिन अब नहीं हारंेगे
हम
जीतेंगे बाजी या लड़ते हुए जां देंगे हम।
जो भी हो हालत चाहे जो भी डर, मजबूरी हो
दुश्मनों को और अब दाना नहीं डालेंगे हम।
आप अपनी सावधानी, आप अपने सब जतन
देखना क्यों कर सकेंगे, करना जो चाहेंगे हम।
आंखें क्या दिखलाती हैं यह मौसमी ऊदी हवा
सारे तूफानों को पल में घुटनों पे ला देंगे हम।
रंग इतने और इतने रंगो की यह जिंदगी
जिंदगी भी देखेगी जब रंग दिखलाएंगे हम।
देखना तुम भी चमक इन जुगनुओं की ’मिशरा‘ अब
रात की गहराइयों को चांद पहुंचा देंगे हम।
२७ अगस्त २०१२
|