अनुभूति में
डॉ. शिवशंकर मिश्र
की रचनाएँ—
अंजुमन में--
क्यों कभी
दिन बुरे आते हैं
माफ कर दो, भूल जाओ
हारते ही आए
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दिन बुरे आते है
दिन बुरे आते है लेकिन अच्छे भी
आते तो हैं
आंसू हम अपने कभी चुपचाप पी जाते तो हैं।
दो पलों की सारी खुशियाँ और उन के इतने गम
देर से हम समझे लेकिन दिल से पछताते तो हैं।
देखा इतना और अब तक, सीढ़ियाँ उम्रें चढ़ी
झेलते हैं जो हवाएं, ऊंचे लहराते तो हैं।
जनते हैं वे भी कैसे वक़्त लेता करवटें
याद जब करते हमें वे, थोड़ा घबराते तो हैं।
सबके अपने हैं बहाने रोने के सब रोते हैं
’मिशरा‘ सहते दर्द हम भी, दर्द में गाते तो हैं।
२७ अगस्त २०१२
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