अनुभूति में शाहिद नदीम की रचनाएँ-
नई रचनाओं में-
किसी फरेब से
तसव्वुर में तेरा चेहरा
दिल दुखाता है
हर नफस को खिताब
अंजुमन में-
उसी फिजां में
देखते हैं
नस्ले-आदम
शब का सुकूत
सुनहरी धूप
का मंजर
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किसी फ़रेब से
किसी फ़रेब से
अपने न खुशबयानी से
उगा के देखा है फ़सलों को दिल के पानी से।
मेरे खुलूस की खुशबू का पूछती है पता
हवाएं आज भी घर-घर में इत्रदानी से।
न जाने कितने ही जुगनू सजे हैं पलकों पर
गमे हयात में बस एक शादमानी से।
कोई खुलूस का रिश्ता कोई वफा का दिया
मुझे यकी है मिलेगा न बदगुमानी से।
अभी तो और भी गुल होंगे रोशनी के चराग
हवा-ए-वक्त की कुछ खास मेहरबानी से।
जवाब दे चुके आसाब मेरी फिक्रों के
किताबें जर की चमकती हुई कहानी से।
न कोई तरजे वफा और न कोई फिकरो अमल
अजीब लोग हैं बनते हैं खानदानी से।
नदीम हलक ए अहबाब भी ख़फा सा है
तुम्हारे लहजे की शायद यह हक बयानी से।
७ मार्च २०११
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