अनुभूति में
संजू शब्दिता की रचनाएँ-
नई रचनाओं
में-
कैसी ये मुलाकात
जरा सी बात पर
हमारी बात
हम भी अखबारों में
हमें आदत है
अंजुमन में—
ये इश्क
सिर्फ कानों सुना नहीं जाता
वो मेरी रूह
हँसते मौसम
हुए रुखसत दिले-नादा
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हुए रुखसत
दिले-नादां
हुए रुखसत दिले-नादां की ही कुछ
सिसकियाँ भी थीं
खयालों में वही पहली नज़र की मस्तियाँ भी थीं
लहर तड़पी थी हर इक याद पे मचला भी था साहिल
ज़माने की वही रंजिश में डूबी किश्तियाँ भी थीं
बिखरती वो घड़ी बीती न जाने कितनी मुश्किल से
दबी ही थी जो सीने में क़सक की बिजलियाँ भी थीं
कभी कहते थे वो भी उम्र भर यूँ साथ चलने को
चलीं हैं साथ जो अब तक वही गमगीनियाँ भी थीं
भुलाकर यूँ न जी पायेंगे गुजरे वक़्त को हमदम
नहीं भूले हैं जो अब तक, वही बेचैनियाँ भी थीं
अभी तक याद है वो कौन सा लम्हा हुआ कातिल
नज़र खामोश थी औ दिल की कुछ मजबूरियाँ भी थीं
१६ दिसंबर
२०१३
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