अनुभूति में
ओम प्रकाश 'नदीम' की रचनाएँ—
नई रचनाओं
में-
चल पड़ा दरिया
जिक्र मत करना
ये न समझो
सामने से
अंजुमन में-
नज़र आते हैं
बंद घर में
मर्तबा हो
सपने में
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ये न समझो
ये न समझो ऐसा वैसा वास्ता सूरज
से है,
ये सफर ऐसा है अपना सामना सूरज से है।
हम सितारों की तरह छोटे हैं तो छोटे सही,
झूठ क्यूँ बोलें हमारा सिलसिला सूरज से है।
ये न सोचो रात भर करना पड़ेगा इन्तजार,
बस ये समझो रात भर का फासला सूरज से है।
बेतवज्जो हो गई उसके चरागों की चमक,
इस कदर वो इसलिये शायद खफा सूरज से है।
रात में दरिया किसी को क्या दिखा पायेगा अक्स,
ये सिफत पानी की मिस्ले आइना सूरज से है।
धूप खाने में कही पानी न मर जाये ‘नदीम’,
हमको अन्देशा इसी नुक्सान का सूरज से है।
२ जुलाई २०१२ |