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अनुभूति में ओम प्रकाश 'नदीम' की रचनाएँ—

नई रचनाओं में-
चल पड़ा दरिया
जिक्र मत करना
ये न समझो
सामने से

अंजुमन में-
नज़र आते हैं
बंद घर में
मर्तबा हो
सपने में

 

सपने में

सपने में गिरते देखे थे पक्के–पक्के फल।
आंख खुली तो हाथ में आए कच्चे–कच्चे फल।

हम ठेले तक पहुंचे पहुंचें इससे पहले ही,
सेठ महाजन छांटके ले गए अच्छे–अच्छे फल।

जीते जी रोटी न मिली जिस बू.ढ़ी काकी को,
उसकी तेरहवीं ने खाए महंगे महंगे फल।

भाव न कम हो जाएँ इस डर के मारे अक्सर,
सड़ जाते हैं गोदामों में रक्खे–रक्खे फल।

देख के इतना जहर फ़जाओं में डर लगता है,
सूख न जाएँ पेड़ों पर ही लटके–लटके फल।

आज का बोया आज ही काटेंगे ये मत सोचो,
कुछ तो वक्त लगेगा बीज को बनते बनते फल।

२४ नवंबर २००५

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