अनुभूति में लक्ष्मण की रचनाएँ
अंजुमन में-
नजर ढूँढती रहे नजारा
न तलवारें उठाई हैं
फुरसत न थी
यों
तो सबको
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नजर ढूँढती रहे नजारा
नजर ढूँढती रहे नजारा बाद हमारे
घर बन जाए मौन इशारा बाद हमारे।
हुस्न तुम्हारा हमरी नजरों का कमाल है
कौन रखेगा ख्याल तुम्हारा बाद हमारे।
जख्म जिगर पर झेल-झेल कर जिसको पाला
हो जाए ना सब बेचारा बाद हमारे।
फकत एक ही हसरत लेकर किया अलविदा
होंठों पर हो नाम हमारा बाद हमारे।
कोई फर्क नहीं पड़ता है ना होने से
जग उतना ही होगा प्यारा बाद हमारे।
शब्दों का व्यापार कर रहा शायर-शायर
ढूँढेगी यह गजल सहारा बाद हमारे।
‘लक्ष्मण’ तो ऐसे ही इक दिन चल देगा, पर
गूँजेगी कविता की धारा बाद हमारे।८ जुलाई
२०१३ |