अनुभूति में लक्ष्मण की रचनाएँ
अंजुमन में-
नजर ढूँढती रहे नजारा
न तलवारें उठाई हैं
फुरसत न थी
यों
तो सबको
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न तलवारें उठाई हैं
न तलवारें उठाईं हैं, न तो खंजर लिया मैंने
मुकाबिल जुल्म के यारो फकत अक्षर लिया मैंने।
सलीके से बिचारा झूठ बोले जा रहा था वो
रहम भी तो जरूरी है, भरोसा कर लिया मैंने।
जहाँ से फूल ही बस फूल ही पाता रहा था मैं
वहाँ हँसते हुए काँटों से दामन भर लिया मैंने।
चुभेगा ही चुभेगा क्यों न काँटों-सा वो आँखों में
जिसे दिल में बिठाना था उसे सरपर लिया मैंने।
अकेला छोड़कर मुझको तमाशाई बने थे सब
बहुत मजबूर होकर हाथ में पत्थर लिया मैंने।
८ जुलाई २०१३ |