अनुभूति में
क़ैश जौनपुरी
की रचनाएँ-
अंजुमन में-
उजड़े हुए चमन
वो जाने कहाँ हैं
हम तुम्हारे अब भी हैं
हम तेरे हो गए
हम दिल से हैं
हारे
कविताओं में-
दुनिया बहुत आगे जा चुकी है
वो बुड्ढा
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दुनिया बहुत आगे जा चुकी है
मैं इंडियन हूँ
सुबह-सुबह सो के उठा
अपना मोबाइल ढूँढा
मेरा मोबाइल एलजी का है
रिलायन्स का कनेक्शन है
आर वर्ल्ड की सुविधा है
सुबह-सुबह मूड हुआ
क्यों न कुछ मनोरंजन हो जाए
दुनिया कितनी आगे जा चुकी है
मोबाइल पर ही मनोरंजन हो जाता है
मैं घुस गया मोबाइल के अंदर
मोर सर्विसेस के अंदर
लिखा था, वुमेन्स वर्ल्ड
सोचा, अच्छा मनोरंजन मिल गया
सुबह-सुबह
उसी में था, ऑप्शन
बेबी नेम का
सोचा, चलो नाम ढूँढ़ते हैं
मेरी बच्ची जब होगी तो
उसका नाम रख लेंगे और
बच्ची से कहेंगें
बेटी! तुम्हारा नाम
मैंने मोबाइल पर ढूँढ़ा था
दुनिया कितनी आगे जा चुकी है
मगर, मेरे मनोरंजन की
शकल बिगड़ गई
जब मैंने देखा
लिखा था
हिंदू, मुस्लिम, सिख, क्रिश्चियन
अब मेरा मुँह बिगड़ गया
यहाँ भी यही सब
मैंने तो सोचा था
दुनिया बहुत आगे जा चुकी है
अब मैं कौन-सा नाम लूँ
अपनी बच्ची के लिए
हिंदू का. . .नहीं
इससे तो वो हिंदू हो जाएगी
मुस्लिम का. . .
नहीं - नहीं
फिर तो वो अल्पसंख्यक हो जाएगी
सिख का. . .
नहीं ये भी नहीं
फिर तो वो
किसी दंगे में मार दी जाएगी
क्रिश्चियन का. . .
नहीं ये भी ठीक नहीं
उसे लोग विदेशी कहने लगेंगे
मगर मैं क्या करूँ
मैं तो सोच रहा था, को
अच्छा-सा नाम मिलेगा
मेरी बेटी को मगर
सब बेकार हो गया
मेरा दम घुटने लगा
पढ़-पढ़ के
आभा-आरती
आयशा-आलिया
परमीत-हरकौर
जूली-जेनीफर
ये सब तो जाने-पहचाने हैं
मुझे को ऐसा नाम न मिला
जिसे मैं अपनी बेटी को दे सकूँ
उधर मुझे लगा
चारो. . .अरे! वही चारो
हिंदू, मुस्लिम, सिख, क्रिश्चियन
आपस में झगड़ रहे हैं
कि मेरा अच्छा है
मेरे में शांति है
मेरे में जन्नत है
मैं बोर होने लगा, मगर तभी
मैंने देखा
चारों के चारों, भागे आ रहे हैं
मेरी ओर
मुझे लगा, मैं गया
आया था, नाम ढूँढ़ने
ये सब मिलकर, मार डालेंगे
फिर क्या था
अभी तो मुझे बहुत कुछ
करना था
शादी भी, बेटी भी
मैं भागा, वो सब
मेरे पीछे
भागे आ रहे हैं
मेरा दम घुटने लगा
मैं भागता रहा
वो भगाते रहे
बैक करते-करते
मैं डर रहा था
कहीं गलती से
हड़बड़ी में ही
को एक
सेलेक्ट न हो जाए
जब मैं बैक करते-करते
डिस्पले तक पहुँचा
तब जाके राहत मिली
और मैंने पीछे मुड़ के
देखा, चारों
मोबाइल के स्क्रीन की
जेल में बंद हो गए
और आपस में कह रहे थे
यार! हाथ नहीं आया कमीना
ये कहते वक़्त, चारों अपने-अपने
हाथ मसल रहे थे
अब मैंने जाना
दुनिया कितनी आगे जा चुकी है
9
दिसंबर 2007
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