अनुभूति में
करीम पठान अनमोल
की रचनाएँ-
अंजुमन में-
अब ना कोई कमी
किस्से नहीं रहे
दिये में तेल-सा
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किस्से नहीं रहे
किस्से नहीं रहे वो फ़साना
नहीं रहा
मजनूं के जैसा कोई दीवाना नहीं रहा
आती है हर इक लफ़्ज़ से मतलब की कोई बू
बातों में लज़्ज़तों का ज़माना नहीं रहा
होते थे जिस तरह से कभी दुख में हम शरीक़
वैसे किसी के पास भी जाना नहीं रहा
साये में समा लेता था जो गाँव की बातें
बरगद का अब वो पेड़ पुराना नहीं रहा
माज़ी में खो गए कहीं अनमोल सारे दिन
खेतों से शाम लौट के आना नहीं रहा
१८ मार्च २०१३
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