अनुभूति में
करीम पठान अनमोल
की रचनाएँ-
अंजुमन में-
अब ना कोई कमी
किस्से नहीं रहे
दिये में तेल-सा
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दिये में तेल-सा
दिये में तेल-सा जलना पड़ेगा
ख़्वाब-सा आंख में पलना पड़ेगा
जो सजना है गले में हार बनके
तो सोने की तरह गलना पड़ेगा
बहुत सच बोलता है आजकल तू
मगर ये हाथ फिर मलना पड़ेगा
चाहते हो अगर मंज़िल को छूना
तो तपती धूप में चलना पड़ेगा
अभी सूरज की तरह ख़ूब चमको
शाम के साथ फिर ढलना पड़ेगा
उमर के साथ लाचारी बढ़ी गर
तुम्हें हर आँख में खलना पड़ेगा
कहाँ आसान है अनमोल होना
बिना रुत के तुझे फलना पड़ेगा
१८ मार्च २०१३
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