अनुभूति में
जतिन्दर परवाज की रचनाएँ-
नई रचनाओं में-
बारिशों में नहाना
मुझको खंजर
यार पुराने
यों ही उदास है दिल
वो नज़रों से
अंजुमन में-
आँखें पलकें गाल भिगोना
ख्वाब देखे थे
गुमसुम तनहा
जरा सी देर में
शजर पर एक ही पत्ता
सहमा सहमा
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यार पुराने
यार पुराने छूट गए
तो छूट गए
काँच के बर्तन टूट गए तो टूट गए
सोच समझ कर होंट हिलाने पड़ते हैं
तीर कमाँ से छूट गए तो छूट गए
शहज़ादे के खेल खिलोने थोड़ी थे
मेरे सपने टूट गए तो टूट गए
इस बस्ती में कौन किसी का दुख रोये
भाग किसी के फूट गए तो फूट गए
छोड़ो रोना धोना रिश्ते नातों पर
कच्चे धागे टूट गए तो टूट गए
अब के बिछड़े तो मर जाएँगे 'परवाज़'
हाथ अगर अब छूट गए तो छूट गए
१७ मई २०१० |