आँखें पलकें गाल
आँखें पलकें गाल भिगोना ठीक नहीं
छोटी-मोटी बात पे रोना ठीक नहीं
गुमसुम तन्हा क्यों बैठे हो सब
पूछें
इतना भी संजीदा होना ठीक नहीं
कुछ और सोच ज़रीया उस को पाने का
जंतर-मंतर जादू-टोना ठीक नहीं
अब तो उस को भूल ही जाना बेहतर
है
सारी उम्र का रोना-धोना ठीक नहीं
मुस्तक़बिल के ख़्वाबों की भी
फिक्र करो
यादों के ही हार पिरोना ठीक नहीं
दिल का मोल तो बस दिल ही हो
सकता है
हीरे-मोती चाँदी-सोना ठीक नहीं
कब तक दिल पर बोझ उठाओगे
'परवाज़'
माज़ी के ज़ख़्मों को ढ़ोना ठीक नहीं
२ नवंबर २००९ |