जिस्म
मुझे मेरा जिस्म छोड़कर बह गया नदी में
अभी उसी दिन की बात है
मैं नहाने उतरा था घाट पर जब
ठिठुर रहा था-
वो छू के पानी की सर्द तहज़ीब डर गया था।
मैं सोचता था,
बग़ैर मेरे वो कैसे काटेगा तेज़ धारा
वो बहते पानी की बेरुखी जानता नहीं है।
वो डूब जाएगा-सोचता था।
अब उस किनारे पहुँच के मुझको बुला रहा है
मैं इस किनारे पे डूबता जा रहा हूँ पैहम
मैं कैसे तैरूँ बग़ैर उसके।
मुझे मेरा जिस्म छोड़कर बह गया नदी में।
४ मई २००९ |