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अनुभूति में देवेश देव की रचनाएँ -

अंजुमन में-
उनका हुस्ने शबाब
चिन्ताओं की लकीरों
नजर से नजर
मैंने माना
रंजो गम दिल में

 

मैंने माना

मैंने माना कि मेरे हाथ ये जल जाएँगें
लेकिन इस राख के सब शोले निकल जाएँगे

धन की डोरी से सभी दोस्त बँधे हैं मेरे
वक्त बदलेगा तो सब दोस्त बदल जाएँगे

सामने उसके बहुत ज़ब्त रखूँगा लेकिन
आँख मिलते ही सब अरमान मचल जाएँगे

जो नसीहत से नहीं सँभले किसी तौर वो दोस्त
ठोकरें खाएँगे दुनिया की सँभल जाएँगे

शेरगोई का जिन्हें 'देव' है दावा वो भी
मिरे अशआर सुनेंगे तो उछल जाएँगे

९ जून २०१४

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अनुभूति व्यक्तिगत अभिरुचि की अव्यवसायिक साहित्यिक पत्रिका है। इसमें प्रकाशित सभी रचनाओं के सर्वाधिकार संबंधित लेखकों अथवा प्रकाशकों के पास सुरक्षित हैं। लेखक अथवा प्रकाशक की लिखित स्वीकृति के बिना इनके किसी भी अंश के पुनर्प्रकाशन की अनुमति नहीं है। यह पत्रिका प्रत्येक सोमवार को परिवर्धित होती है

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