अनुभूति में
देवेश देव
की रचनाएँ -
अंजुमन में-
उनका हुस्ने शबाब
चिन्ताओं की लकीरों
नजर से नजर
मैंने माना
रंजो गम दिल में
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चिन्ताओं की लकीरों
चिन्ताओं की लकीरों से पूरित ललाट है
कब जिन्दगी का रास्ता सीधा सपाट है?
अन्दर की बात ये है कि डूबा है कर्ज में
बाहर से दखने में बडा ठाट -बाट है
कैंसर की तरह आज सियासत है देश की
इसका है कुछ इलाज? न ही कोई काट है
रोकेगा कौन उसको वो हाकिम है शहर का
हर रोज ही वो करता यहाँ मार काट है
करती नहीं है न्याय यहाँ न्याय पालिका
अब न्याय पालिका भी लगे कोई हाट है।
९ जून २०१४
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