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अनुभूति में अश्वनि शर्मा की रचनाएँ-

अंजुमन में—
दलालों का हुनर
दुनियादारी है
देखिये देखिये
रात बीती
हैं ये मेहमान

 

दलालों का हुनर

दलालों का हुनर फिर से चला क्या
हुआ बाज़ार में सौदा मेरा क्या

टिटहरी आसमाँ पंजे में ले कर
कहे है आसमाँ होता भला क्या

भले ही घाव कितना भी हरा हो
छुटा है ये खुजाने का मज़ा क्या

फुदकना ही महज जो जानता है
भला पूछें उसे अब कूदना क्या

बहुत रफ़्तार में था शख्स कोई
रहा खामोश जो पूछा मिला क्या

गली में एक पागल घूमता है
शहर में फिर हुआ है हादसा क्या

हिमाक़त है सहर की बात करना
अँधेरा हो गया है रहनुमा क्या 

२५ नवंबर २०१३

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