अनुभूति में
आशीष श्रीवास्तव की रचनाएँ-
नयी रचनाओं में-
कभी रोटी नहीं मिलती
बेताब तलाशों में
सन्नाटे की शहनाई
सीख गए
अंजुमन में--
आज बरसों हुए
गुमनाम मुसाफिर ग़ज़लों का
जैसे कभी अपना माना था
दिल को बचाना मुश्किल था
दरिया ज़रा
धीरे चल
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बेताब तलाशों
में
बेताब तलाशों में अक्सर, गुमराही के मंज़र आते हैं
दरिया तो किनारे ढूँढ़ता है, किस्मत में समंदर आते हैं
वो पन्ने जहाँ तेरी चर्चा थी, हमने खुद खाली छोड़ दिए
हमें इल्म है कि रुसवाई के, इल्जाम तुम्हीं पर आते हैं
महसूस कर सको तो कर लो, लम्हों में छुपी खामोशी को
हर शाम तेरी तन्हाई में, हम शक्ल बदलकर आते हैं
यहाँ शाम को बस्ती लुटने का, अफ़सोस नहीं करतीं रातें
अब ये कोई नयी बात नहीं, यहाँ रोज़ सिकंदर आते हैं
अब किसकी तलाश में उड़ते हुए, सहराओं की मिट्टी कहती है
ये हुनर मुहब्बत वाले हैं, टुकडों में बिखरकर आते हैं
ये राह-ऐ मुहब्बत अब तुझ को, 'आशीष' कहाँ ले आई है
चलता हूँ तो काँटे चुभते हैं, रुकता हूँ तो पत्थर आते हैं
१९ जनवरी २०१५
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