अनुभूति में
आशीष श्रीवास्तव की रचनाएँ-
अंजुमन में--
आज बरसों हुए
गुमनाम मुसाफिर ग़ज़लों का
जैसे कभी अपना माना था
दिल को बचाना मुश्किल था
दरिया ज़रा
धीरे चल
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दिल को बचाना
मुश्किल था
जब वक़्त की आँधी चलने
लगी साहिल को बचाना मुश्किल था
हम जैसे तैसे बच भी गए पर दिल को बचाना मुश्किल था
आसान हुआ था हिज्र का गम औ’ वस्ल की खुशियाँ मुश्किल थी
आसां को बचाना आसां था मुश्किल को बचाना मुश्किल था
अरमान था तुझको पाने का नजदीक ही थी मंजिल मेरे
हाथों में हाथ रहा फिर भी मंजिल को बचाना मुश्किल था
जिस शाम तेरी याद आई थी दामन कुछ खाली खाली था
तन्हाई तो हासिल थी लेकिन हासिल को बचाना मुश्किल था
भीनी भीनी सी रेत ने जब गलियों का दामन छोड़ दिया
आशीष तेरे फिर बचपन की महफ़िल को बचाना मुश्किल था
२९ अगस्त २०११
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