जब खुली आँखें जब खुली आँखें तो इन आँखों को रोना आ गया
मैंने समझा वाकई मौसम सलोना आ गया
डर रहा हूँ बेनियाज़ी अब कहाँ ले जाएगी
चलते-फिरते भी मेरी आँखों को सोना आ गया
एक चुल्लू आब लेकर फिर रहा है इस तरह
जैसे गागर में उसे सागर समोना आ गया
देखकर अंजाम फूलों का मैं घबराया बहुत
खुशगुमानी थी कि धागों में पिरोना आ गया
क्यों शिकायत है भला दरिया की वुसअत से हमें
चंद कतरों ही से जब लब को भिगोना आ गया
तख़्त पर बैठा हुआ यों खेलता हूँ ताज से
जैसे इक बच्चे के हाथों में खिलौना आ गया
कोई भी 'आलम' लबे दरिया अभी पहुँचा नहीं
नाखुदाओं को मगर कश्ती डुबोना आ गया।
२
जून २००८
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