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पुरवा लहराई
है |
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झूम उठी
धरती की मोहक अँगडाई हैं
मांदर के ताल पर
पुरवा लहराई हैं
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गुड की मिठास लिये रिश्तों को सजने दें
सखी आज मौसम को जी भर सँवरने दें
नदिया के तट किसने
बाँसुरी बजाई है
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हरियाली खेतों की, धानी चूनर मन की
भीगे से मौसम में साजन के आवन की
थिरक रहे नूपुर ज्यों
गोरी शरमाई हैं
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टुसू का परब आज नाचे मन का मयूर
मतवारे नैनों में प्रीत का नशा है पूर
सूरज की नई किरऩ
लालिमा-सी छाई है
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बहक रही मादकता, जाग रही चंचलता
घुंघरु के बोल बजे, बिहु के गीत सजे
घर आँगन वन उपवन
जागी तरुणाई हैं
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- पद्मा मिश्रा |
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