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मन बटोही |
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मन बटोही, रुक तनिक
विश्राम कर ले
कुंदनी इस भोर में
सपनों का है संसार जागा
स्याह अँधियारे में आँखें
मूँदकर है काल भागा
मुड़के पीछे देखना मत
सामने ही दृष्टि कर ले
अब हवाओं संग धुआँ
करने चला है होड़ बाजी
स्वयं को कैसे बचाए
यह मनुज अब कामकाजी
रूपसी इच्छाओं का अब
तू तनिक संहार कर ले
गोमुखी गंगा तो निर्मल
स्वच्छ निकली
राह में कितने लुटेरों
ने बना दी धार पतली
मन ठहर संकल्प कर, वर
स्वच्छता अभियान कर ले
सत-असत की भीड़ जग में
साथ मिलकर चल पड़ी है
सत्यता चुपचाप कोने
आँजुरी बाँधे खड़ी है
सत्य को पहचान कर तू
असद ऊपर जीत कर ले
1
- मंजुलता श्रीवास्तव |
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इस माह
गीतों में-
अंजुमन में-
छंदमुक्त
में-
विविधा में-
पुनर्पाठ
में-

पिछले माह
१ मई २०१९ को प्रकाशित
शीशम विशेषांक में

गीतों में-
अविनाश ब्यौहार,
आभा सक्सेना दूनवी,
उमाप्रसाद लोधी,
ओमप्रकाश नौटियाल,
कल्पना रामानी,
गिरिमोहन गुरु,
छाया सक्सेना प्रभु,
पंकज परिमल,
परशुराम शुक्ला
डॉ.,
बसंत
कुमार शर्मा,
भावना तिवारी,
रमा प्रवीर वर्मा,
विश्वंभर शुक्ल,
शंभु शरण मंडल,
शशि पाधा,
शशि पुरवार,
शिव जी श्रीवास्तव,
शिवानंद सहयोगी,
शीला पांडे,
श्रीधर आचार्य़ शील, शैलेश गुप्त वीर,
संजीव वर्मा सलिल,
सुरेशचंद्र सर्वहारा,
हरिहर झा।
छंदमुक्त
में-
डा. गंगाधर ढोके,
प्रमोद,
मंजुल भटनागर,
मधु प्रधान,
मुकेश कुमार तिवारी,
सूर्यप्रकाश सूरज।
छंद में-
ज्योतिर्मयी पंत,
मंजु गुप्ता,
शैलेन्द्र शर्मा। अंजुमन में-
परमजीत कौर रीत,
सुरेन्द्रपाल वैद्य
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