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९. १२. २०१३

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पीपल की छाँव में

            

  सोचा था बैठेंगे जी भर
हम पीपल की छाँव में
किन्तु सुलगना पड़ा हमें नित
साजिश भरे अलाव में

चूर हुये सिन्दूरी सपने
बिछुड़ गये सब जो थे अपने
नयनों की निंदिया से अनबन
सहमी है पायल
की रुनझुन
रहजन बैठे घात लगाये
गली-गली हर ठाँव में

जिसको समझा सुख का सागर
वो तो था पीड़ा का निर्झर
आस खुशी की हुई जहाँ से
मिले दर्द के
गीत वहाँ से
मन का मोती बिका अजाने
कौड़ी वाले भाव भाव में

मौन हुये अकुला अकुला कर
मधु गीतों के भावुक अक्षर
शापित है साँसों की राधा
मुरली ने भी
व्रत है साधा
पासे उलटे पड़े न जाने
क्यों अपने हर दाँव में

-डा. मधु प्रधान

इस सप्ताह

गीतों में-

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मधु प्रधान

अंजुमन में-

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मुन्नी शर्मा

छंदमुक्त में-

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निर्मल गुप्त

मुक्तक में-

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लाखनसिंह भदौरिया सौमित्र

पुनर्पाठ में-

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शैलाभ शुभिशाम

पिछले सप्ताह
२ दिसंबर २०१३ के अंक में

गीतों में-
सुरेन्द्र शर्मा

अंजुमन में-
राम मेश्राम

छंदमुक्त में-
स्वदेश भारती

लंबी कविताओं में-
नरेन्द्र त्रिपाठी

पुनर्पाठ में-
अमरेन्द्र नारायण

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प्रकाशन : प्रवीण सक्सेना -- परियोजना निदेशन : अश्विन गांधी
संपादन¸ कलाशिल्प एवं परिवर्धन : पूर्णिमा वर्मन

सहयोग :
कल्पना रामानी
   

 

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