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अमरेन्द्र नारायण

बहु आयामी व्यक्तित्व के धनी अमरेन्द्र नारायण बैंकॉक स्थित एशिया पेसेफिक टेले कम्यूनिटी के महासचिव हैं। वे वैज्ञानिक होते हुए भी सहित्य के प्रति भावुक और सहृदय हैं। सरल सुसंस्कृत भाषा में गंभीर भाव व्यक्त कर देना उनकी कलम का कमाल है। ये पंक्तियां उनकी कृति "थोड़ी बारिश दो" से ली गयी हैं।




 

 

 

बारिश

है बहुत तपिश हर आंगन में,
है लगी आग खलिहानों में
ईश्वर तुम थोड़ी कृपा करो
इस गाँव को थोड़ी बारिश दो

वे दिन गुज़रे
जब घर घर में बस एक अंगीठी जलती थी
ममता-के-स्नेहिल-हाथों-से-वात्सल्य-की-थाली-सजती-थी
घर–घर के हर कमरे में अब बस भठ्ठी एक सुलगती है
भोलापन कहीं बिलखता है और
करुणा कहीं मचलती है

बगिया में फूल तो
खिलते हैं पर उनमें परिचित गंध नहीं
शायद खिलने में फूलों को मिलता कोई आनंद नहीं
आँगन में तरु की छाया भी कुछ चैन नहीं दे पाती है
ठंडी बयार आते आते कुछ
श्रांत शिथिल हो जाती है

भगवान तुम्हारी
कृपा बिना यह आग नहीं बुझ पाएगी
फूलों की लाली गालों पर आते आते रुक जाएगी
मरने की जो मन्नत करते उनमें जीने की ख्वाहिश दो
ईश्वर तुम इतनी कृपा करो
इस गाँव को थोड़ी बारिश दो।

iफिजी से प्रकाशित "संस्कृति" त्रैमासिक से साभार

१ अगस्त २००६

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