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२४. ९. २०१२

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क्या मिला सचमुच शिखर

 

क्या मिला सचमुच शिखर ?

मिल गए
ऐश्वर्य कितने अनगिनत
पञ्च तारा जिंदगी में हो गया विस्मृत विगत
घर गली फिर गाँव फिर
छूटा नगर

कर्म पथ
पर आ नहीं पाई विफलता
मान आदर पदक लाई सब सफलता
मित्र बिछड़े चल न पाए साथ अपने
इस डगर

एकला
चलता रहा शुभ लक्ष्य पाया
चक्र किन्तु नियति ने ऐसा घुमाया
ले गई किस छोर पे जाने उठाकर
ये लहर

उम्र के
इस मोड़ पर नहिं साथ कोई
सोचता हूँ फसल ये कैसी है बोई
खो गया वो रास्ता, जाता था
जो मेरे शहर

--दिगंबर नासवा

इस सप्ताह

गीतों में-

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दिगंबर नासवा

अंजुमन में-

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बल्ली सिंह चीमा

छंदमुक्त में-

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मनोज श्रीवास्तव

कुंडलिया में-

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ज्योत्सना शर्मा

पुनर्पाठ में-

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दीपक वाईकर
 

पिछले सप्ताह
१७ सितंबर २०१२ के अंक में

गीतों में-
कृष्ण बिहारी लाल पांडेय

अंजुमन में-
सतीश कौशिक

छंदमुक्त में-
महेन्द्र भटनागर

क्षणिकाओं में-
डॉ. उमेश महादोषी

पुनर्पाठ में-
दिव्या माथुर

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प्रकाशन : प्रवीण सक्सेना -|- परियोजना निदेशन : अश्विन गांधी
संपादन¸ कलाशिल्प एवं परिवर्धन : पूर्णिमा वर्मन

सहयोग : दीपिका जोशी

 
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