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२२. ६. २००९

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पात झरे हैं सिर्फ़

 

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पात झरे हैं सिर्फ़
जड़ों से मिट्टी नहीं झरी।

अभी न कहना ठूँठ
टहनियों की उँगली
नम है।
हर बहार को
खींच-खींच कर
लाने का दम है।
रंग मरे है सिर्फ़
रंगों की हलचल नहीं मरी।
जड़ों से मिट्टी नहीं झरी।

अभी लचीली डाल
डालियों में
अँखुए उभरे
अभी सुकोमल छाल
छाल की गंधिल
गोंद ढुरे।
अंग थिरे हैं सिर्फ़
रसों की धमनी नहीं थिरी।
जड़ों से मिट्टी नहीं झरी।

ये नंगापन
सिर्फ़ समय का
कर्ज़ चुकाना है
फिर तो
वस्त्र नए सिलवाने
इत्र लगाना है।
भृंग फिरे हैं सिर्फ़
आँख मौसम की नहीं फिरी।
जड़ों से मिट्टी नहीं झरी।

- अनिरुद्ध नीरव

इस सप्ताह

गीतों में-
अनिरुद्ध नीरव

अंजुमन में-
शरद तैलंग

नई हवा में-
कमला निखुर्पा

दोहों में-
सनातन कुमार वाजपेयी 'सनातन'

पुनर्पाठ में-
धर्मवीर भारती का अंधायुग

अनुभूति का १३ जुलाई का अंक कदंब विशेषांक होगा। इस विशेष अवसर के लिए कदंब के फूल या पेड़ से संबंधित गीत, गज़ल, दोहा, हाइकु, क्षणिका,  मुक्तक और छंदमुक्त रचनाएँ आमंत्रित है। रचना भेजने की अंतिम तिथि जुलाई २००९ है।


पिछले सप्ताह
१५ जून २००९ के अंक में

गीतों में-
डॉ. जयजयराम आनंद

अंजुमन में-
अमर ज्योति नदीम

छंदमुक्त में-
हरि जोशी

हाइकु में-
राम निवास मानव

पुनर्पाठ में-
अशोक वाजपेयी

अन्य पुराने अंक

कार्यशाला- का विषय है 'सुख-दुख इस जीवन में', सभी के नवगीतों का स्वागत है।

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प्रकाशन : प्रवीण सक्सेना -|- परियोजना निदेशन : अश्विन गांधी
संपादन¸ कलाशिल्प एवं परिवर्धन : पूर्णिमा वर्मन
-|- सहयोग : दीपिका जोशी
 
३०,००० से अधिक कविताओं का संकलन
   
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