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२३. २. २००९

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यह न समझो1

  यह न समझो कूल मुझको मिल गया
आज भी जीवन-सरित मझधार में हूँ!

प्यार मुझको धार से
धार के हर वार से,
प्यार है बजते हुए
हर लहर के तार से,

यह न समझो घर सुरक्षित मिल गया
आज भी उघरे हुए संसार में हूँ!

प्यार भूले गान से,
प्यार हत अरमान से,
ज़िन्दगी में हर कदम
हर नए तूफ़ान से,

यह न समझो इंद्र-उपवन मिल गया
आज भी वीरान में, पतझार में हूँ!

खोजता हूँ नव-किरन
रुपहला जगमग गगन,
चाहता हूँ देखना
एक प्यारा-सा सपन,

यह न समझो चाँद मुझको मिल गया
आज भी चारों तरफ़ अँधियार में हूँ!

-- डॉ. महेन्द्र भटनागर

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