रश्मि जगी, प्रेम पगी उगा अरुण राग री।
मुदित-मुखी मलयसखी, गा उठी विहाग री।।
शिथिलांचल, दृग चंचल अधर सजल, उर प्रांजल
पुलकित तन, गति मंथर, स्वप्नाप्लावित अंतर।
थकी-थकी, जगी-जगी, अलसायी प्रणय-पगी।
निशा चली, खिली-खिली, ले सुघर सुहाग री।
मुदित-मुखी मलयसखी, गा उठी विहाग री।।
सोती थी द्रुम-दल पर विटप-बाहु-संबल पर।
यौवन से अनिभिज्ञा, अस्त-व्यस्त परिसज्जा।
जलजा-सी, सुरजा-सी, कोमल जीवनजा-सी।
कली खिली नई-नई, ले नवल पराग री।
मुदित-मुखी मलयसखी, गा उठी विहाग री।।
प्राची के बागों में पश्चिम के गाँवों में।
उत्तर के भागों में दक्षिण-तड़ागों में,
जागृति के कमल खिले, नवल-नवल धुले धुले।
जाग उठी रूप-वीण, ले नवीन राग री।
मुदित-मुखी मलयसखी, गा उठी विहाग री।।
प्रो. 'आदेश' हरिशंकर |