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काव्य संगम काव्य संगम के इस अंक में प्रस्तुत है डॉ दुष्यंत की राजस्थानी प्रेम कविताओं का हिंदी रूपांतर। हिंदी रूपांतर कवि ने स्वयं किया है।

डॉ. दुष्यंत

श्री गंगानगर में जन्मे डॉ. दुष्यंत ने इतिहास में पीएच डी की है। काम का प्रारंभ अध्यापन से किया और लेखन के शौक के चलते पत्रकारिता की दुनिया में आ गए। हिंदी और राजस्थानी में कविताएँ लिखते हैं। संप्रति जयपुर में पत्रकार। एक राजस्थानी कविता संग्रह 'उठे है रेतराग' प्रकाशित।
ई मेल- dr.dushyant@gmail.com

 

 

तिनके से हल्का आदमी
राजस्थानी प्रेम कविताएँ



प्रेम दो शब्दों का मेल है
और उस से बनी थाती भी
या तो दो व्यक्ति एकमेक हो जायें या
एक हो जाए ख़त्म समूल



तुम्हारा और मेरा प्रेम में
डूबना लाजमी था
और ये सिर्फ़ इत्तेफाक कि
हमारा आपस में प्रेम हुआ

हो तो यूं भी सकता था
कि मुझे प्रेम होता
लैला ,हीर .मूमल या मरवन से
और तुम्हें
रांझे, मजनू ,महेन्द्र या ढोले से .



मैंने उस परम पिता की
कभी पूजा नहीं की ,
कभी सुमिरण नहीं किया

जब तुमने मुझे
अपने ईश्वर से अपने लिए माँगा
और पाया
मैं आठ वक्त का पुजारी हो गया



तारों भरा आसमान
जैसे थाली एक बड़ी सी
एक एक तारा जैसे
आंखों की चमक

टूटता है तारा जब कोई
तो लगता है
जैसे फिसला हो
आंसू तुम्हारी आँख से
बन ही जायेगा मोती ये
एक क्षण में
तारों भरी रात में



जब किसी शाम
धोये हाथ मुँह
काम से लौटकर
हेंडी टोवल की याद ने
ला दिए आँसू
और भिगो दिए आँखों के किनारे
आदमी आखिर
काम से लौटकर
हाथ मुँह क्यों धोता है ?

१९ मई २००८

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