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जाने किसकी नज़र लगी
अम्मा की बरसी पर
पिछले साल गया था घर
अबकी बार अजब सन्नाटा
पसरा था हर ओर
नहीं सुनाई पड़ा कहीं पर
गौरैया का शोर
गुमसुम बापू की आँखों में
झाँक रहा था डर
घर के भीतर हर कोने में
लगा हुआ था झोल
सूखी तुलसी तवाँ रही थी
खोल रही थी सबकी पोल
देख दृश्य घर-आँगन का
भीतर से गया सिहर
घर के दीवारों की दरकन
आँखें रही गुँड़ेर
तिरकोल की लत्तर पसरी
देखो अजब मुँड़ेर
जाने किसकी लगी आज है
घर को बुरी नज़र
–कृष्णा नंद कृष्ण
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