वसंती हवा

वासंती-दोहे
गिरीश बिल्लोरे "मुकुल"

 

मंद पवन मादक मदन, प्रियतम भाव विभोर,
पायल-ध्वनि मोहक लगे, शेष सबइ कछु शोर

नयनन सोहे प्रीत रंग, प्रीत पवन चहुँ ओर
टेसू बोते वेदना, विरहन पीर अछोर

प्रिय बिन बैरन-सी लगे पायल की झंकार
हाथ निवाला ले खड़ा ओंठ करे इनकार

देह जगाए कामना, हाथ सजाते रूप
दरपन तब जाके कहे- "अब तुम प्रिय अनुरूप''

मादक माधव माह यो, जोग-बिजोग दिखाए
प्रिय से दूर तनिक रहो, प्रीत दुगुन हुई जाए

तापस का प्रिय राम है, ज्यों बनिकों को दाम
प्रेम-रीति के दास हम, मुख वामा को नाम

११ फरवरी २००८

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