वसंती हवा

वसंत गीत
द्वारिका प्रसाद माहेश्वरी

 

मा! यह वसंत ऋतुराज री!
आया लेकर नव साज री!

मह-मह-मह डाली महक रही
कुहु-कुहु-कुहु कोयल कुहुक रही
संदेश मधुर जगती को वह
देती वसंत का आज री!
मा! यह वसंत ऋतुराज री!

गुन-गुन-गुन भौंरे गूँज रहे
सुमनों-सुमनों पर घूम रहे
अपने मधु गुंजन से कहते
छाया वसंत का राज री!
मा! यह वसंत ऋतुराज री!

मृदु मंद समीरण सर-सर-सर
बहता रहता सुरभित होकर
करता शीतल जगती का तल
अपने स्पर्शों से आज री!
मा! यह वसंत ऋतुराज री!

फूली सरसों पीली-पीली
रवि रश्मि स्वर्ण-सी चमकीली
गिर कर उन पर खेतों में भी
भरती सुवर्ण का साज री!
मा! यह वसंत ऋतुराज री!

मा! प्रकृति वस्त्र पीले पहिने
आई इसका स्वागत करने
मैं पहिन वसंती वस्त्र फिरूँ
कहती आई ऋतुराज री!
मा! यह वसंत ऋतुराज री!

२४ मार्च २००५

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