वसंती हवा

वन में फूले ढाक, ओ पिया!
श्रीकृष्ण शर्मा

 

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गाछ गुलाल,
खेत हुए केसर,
पेड़ हुए
जैसे कि - फूलघर,
रूप-रंग-रस लाख, ओ पिया!
वन में फूले ढाक, ओ पिया!

सोना हुआ
सूर्य से पीपल,
चाँदी-चाँदी
जहाँ-जहाँ जल,
मन है लेकिन राख, ओ पिया!
वन में फूले ढाक, ओ पिया!

तुम बिन सगुन
हो गए असगुन,
व्यर्थ सिंगार
देह की हर धुन,
आँख दिखाते आक, ओ पिया!
वन में फूले ढाक, ओ पिया!

1 मार्च 2007

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