देखो फिर से वसंती हवा आ गई।
तान कोयल की कानों में यों छा गई।
कामिनी मिल खोजेंगे रंगीनियाँ।।
इस कदर डूबी क्यों बाहरी रंग में।
रंग फागुन का गहरा पिया संग मे।
हो छटा फागुनी और घटा जुल्फ की,
है मिलन की तड़प मेरे अंग अंग में।
दामिनी कुछ कर देंगे नादानियाँ।।
कामिनी मिल खोजेंगे रंगीनियाँ।।
बन गया हूँ मैं चातक तेरी चाह में।
चुन लूँ काँटे पड़े जो तेरी राह में।
दूर हो तन भले मन तेरे पास है,
मन है व्याकुल मेरा तेरी परवाह में।
भामिनी हम न देंगे कुर्बानियाँ।।
कामिनी मिल खोजेंगे रंगीनियाँ।।
मैं भ्रमर बन सुमन पे मचलता रहा।
तेरी बाँहों में गिर गिर सँभलता रहा।
बिना प्रीतम के फागुन का क्या मोल है,
मेरा मन भी प्रतिपल बदलता रहा।
मानिनी हम फिर लिखेंगे कहानियाँ।
कामिनी मिल खोजेंगे रंगीनियाँ।।
९ फरवरी २००९
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