वसंती हवा

जब आया मधुमास
- रामनारायण त्रिपाठी पर्यटक

 

बहुत दिनों के बाद है, जब आया मधुमास।
धरती धानी हो गई, लिए मिलन की आस।।

डाल-डाल पर गंध का, अपना डेरा डाल।
मधुप-तितलियों को करें, ऋतुपति आज निहाल।।

ऋतु बसंत है छा गई, करे कोकिला गान।
प्रकृति परी को हो गया, निज छवि पर अभिमान।

कली-कली है खिल गई, बिखरा रही पराग।
ऋतुपति का संदेश पा, पिक ने छेड़ा राग।।

प्रकृति सुंदरी कर रही, फिर सोलह सिंगार।
अंग-अंग में दिख रहा, है ऋतुपति का प्यार।।

९ फरवरी २००९

इस रचना पर अपने विचार लिखें    दूसरों के विचार पढ़ें 

अंजुमनउपहारकाव्य चर्चाकाव्य संगमकिशोर कोनागौरव ग्राम गौरवग्रंथदोहेरचनाएँ भेजें
नई हवा पाठकनामा पुराने अंक संकलन हाइकु हास्य व्यंग्य क्षणिकाएँ दिशांतर समस्यापूर्ति

© सर्वाधिकार सुरक्षित
अनुभूति व्यक्तिगत अभिरुचि की अव्यवसायिक साहित्यिक पत्रिका है। इसमें प्रकाशित सभी रचनाओं के सर्वाधिकार संबंधित लेखकों अथवा प्रकाशकों के पास सुरक्षित हैं। लेखक अथवा प्रकाशक की लिखित स्वीकृति के बिना इनके किसी भी अंश के पुनर्प्रकाशन की अनुमति नहीं है। यह पत्रिका प्रत्येक सोमवार को परिवर्धित होती है

hit counter