लग रहा है जैसे धरा प्रीत से नहाई है,
प्रीत-राग बसन पहन दुल्हन सज आई है।
वसंती दुपहरी में प्रेम का
उपहार लेके,
प्रियतम के संग में मधुमय
बहार लेके,
नंगेलग पाँव जैसे प्रियतमा दौड़ी आई है।
लग रहा है जैसे धरा प्रीत से नहाई है।
प्रतीक्षारत दुल्हन के नैन
निंदआए हैं,
प्रीत रंग सराबोर अंग सब
अलसाए हैं,
मिलन के उन्माद में ज्यों नववधू बौराई है।
लग रहा है जैसे धरा प्रीत से नहाई है।
धरती के चिरयौवन रूप को
निहार के,
सूरज भी जल रहा है प्रणय की
मनुहार से,
सागर ने तप-तप कर जलकण बरसाई है।
लग रहा है जैसे धरा प्रीत से नहाई है,
९ फरवरी २००९ |