मुक्ति का उल्लास ही
हर ओर छाया
प्यार के इस लोक को किसने बनाया?
रूप, रस और गंध की
सरिता मचलती
सुधि नहीं रहती यहाँ
पल को भी पल की
विश्व व्यंजित नेह कन कण में समाया
प्यार के इस लोक को किसने बनाया?
आचरण को व्याकरण
भाता नहीं है
शब्द का संदर्भ से
नाता नहीं है
मुक्ति के विश्वास की उन्मुक्त काया
प्यार के इस लोक को किसने बनाया?
मौसमों ने त्याग कर
ऋतुओं के डेरे
कर लिए इस लोक में
आकर बसेरे
हार में भी जीत का आनंद आया
प्यार के इस लोक को किसने बनाया?
११ फरवरी २००८
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