वसंती हवा

आयो बहार (दो छंद)
- ओम प्रकाश तिवारी

 
(१)

बसंत के रूप पर सिंहावलोकन छंद -

आयो बहार बयार सखी अस
अंगहिं अंग उमंग जगायो।
गायो सुराग जो बाग में कोकिल
नृत्य में लीन मयूरहिं गायो।
भायो हिये खग नीलहिंकंठ औ
पंथहिं पंथ है पात बिछायो।
छायो चहूँ दिशि चूनर पीत तो
मीत लग्यो ऋतुराज हैं आयो।

(२)

बसंत पंचमी के दिन उत्तर भारत में चौराहों पर रेड़ का वृक्ष गाड़ा जाता है। होली के दिन इसी वृक्ष के इर्द-गिर्द होली लगाकर इसे जलाया जाता है। ज़रा देखिए इस वृक्ष के जीवन में आया बसंत कैसा है?

रेड़ कै पेड़ खड़ा है दुआरे
छुहारे की भांति जो देह सुखाए।
जैसे बजार लगावहिं खातिर
बांधि कोऊ बनिया ठढ़ियाए।
पीत परे सब पात ओ भ्रात
दशा तरु केरि कही नहिं जाए।
बंधु कहो, केहि रूप मा रेड़ के
जीवन मा ऋतुराज हैं आए।

९ फरवरी २००९

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