वसंती हवा

आना वसंत का
- महेश चन्द्र गुप्त ख़लिश

 

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ले के ख़ुदा का नूर वो आना वसंत का
गुलशन के हर कोने पे वो छाना वसंत का

दो माह के इस वक्त में रंग जाए है कुदरत
सबसे अधिक मौसम है सुहाना वसंत का।

मेला बसंत-पंचमी का गाँव-गाँव में
और गोरियों का सजना-सजाना वसंत का

वो रंग का हुड़दंग वो जलते हुए अलाव
आता है याद फाग सुनाना वसंत का

होली का जब त्यौहार आये मस्तियों भरा
मिल जाए आशिकों को बहाना वसंत का

कोई हसीन शय ख़लिश रहे न हमेशा
अफ़सोस, आ के फिर चले जाना वसंत का।

९ फरवरी २००९

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