कर सिंगार ऋतुराज बसंती, रंगों भर लाये
पिचकारी।
प्रकृति नटी ने रची रंगोली, छितराई सुषमा रतनारी।।
सुरभित स्वर्ण-मुकुट धारी, पुष्पों से पुलकित
फुलवारी।
ओढ़ बसंती चादर झूमी, खेतों में सरसों की क्यारी।।
बल-रश्मि के मृदु-चुंबन पर, सरसिज ने जब पलक उघारी।।
ज्योति-पुंज अंजलि भर रति ने बासंती आरती उतारी।।
मधुकर वृन्दे मधु-स्वर गूँजे, मधुकंठी भरती
हुँकारी।
कुञ्ज-कुटीरे मलय समीरे, बाल-विहंगिनि की किलकारी।।
अमराई ऐसी बौराई पात पात नाची मतवारी।
वन में बागन वीथिन में बगरे बसंत की बलिहारी।।
९ फरवरी २००९ |