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प्रेयसी के भाव भरे प्रेमपत्र के समान
रूठे मनमीत को मनाने आज आ गए।
करने सिंगार फिर से प्रकृति सुंदरी का
छोड़ अपना समस्त कामकाज आ गए।
नवकोपलों से सजे द्रुम डालियों के दल
मुस्कुराती कलियों का ले समाज आ गए।
कामनाओं को जगाने सुप्त सपने सजाने
रंग अपना जमाने ऋतुराज आ गए।
९ फरवरी २००९ |