फिर अल्हड़ चैती हवा थिरक रही चहुँ ओर।
धूप उधर मुस्का रही लिए नेह की डोर।।
महुआ फूला बाग में गदराया है नीम।
तितली पंख पसार कर बाँटे खुशी असीम।।
महके सभी कदंब-वन, बँसवट करे कलोल।
चूम तटों को उमगती रह-रह लहरें लोल।।
हुए बावरे आम्र-तरु लिए आम के बौर।
ख़्वाबों का दरिया बहा डूब गया हर ठौर।।
केसर, चंदन, चाँदनी, शोख हुई है धूल।
मत्त हुआ झरबेर तो, भूला होश बबूल।।
रेशम वाली लच्छियाँ बँधा गाँठ अनुराग।
जंगल-जंगल फैलने लगी टेसुई आग।।
११ फरवरी २००८
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