वसंती हवा

जश्ने बहारां आएगा
--चाँद हदियाबादी

 

आ रहा है देखना जश्ने बहारां आएगा
चाँद तारे माँग में उसकी कोई भर जाएगा

नाच उठेगी खुशी से झूम कर वो महजबीं
उसके आँगन में कोई जुगनू सजा कर जाएगा

रात भर सरगोशियाँ होतीं रहेंगी देर तक
उसके कानों में कोई मिसरी का रस भर जाएगा

आज तनहाई का आलम है तो कल होगा मिलन
सुरमई आँखों में वो खुशियों के जल भर जाएगा

भूल जाएगी वो अपना ग़म वस्ल की रात में
उसके ज़ख़्मों पर वो मरहम का असर कर जाएगा

प्यार से अपने भरेगा उसकी नस-नस में खुमार
देखना तन मन को वो चंदन बना कर जाएगा

बंद पलकों में तलाशेगा खुद अपने अक्स को
"चाँद" जाने कितने वो सपने सजा कर जाएगा

११ फरवरी २००८

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