वसंती हवा

होली के दोहे
सुनील जोगी

 

1
फागुन आया खिल गए, टेसू और कनेर
गदराया यौवन कहे, प्रियतम मत कर देर।

साधो ऋतु वसंत की, महिमा बड़ी अनंत
होली में हुलसे फिरें, जिन्हें कहें सब संत।

गली-गली में हो रहा, होली का हुड़दंग
सब पानी-पानी हुए, महँगे हो गए रंग।

घर में जब मुश्किल हुआ, मिलना रोटी दाल
होली में दामाद जी, खिसक गए ससुराल।

दादा को गठिया हुआ, किसे सुनाएँ पीर
पीछे-पीछे घूमती, बुढ़िया लिए अबीर।

लैंडलाइन पत्नी हुई, घिसी-पिटी-सी टोन
होली में साली हुई, ज्यों मोबाइल फ़ोन।

एक हाथ गुझिया लिए, एक हाथ नमकीन
फिर भी होठों को लगे, साली बड़ी हसीन।

1 मार्च 2007

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