वसंती हवा

होली के तीन छंद
आदित्य शुक्ल 

 


1
कोई नहीं निराश अगर, तब तुम जानो होली है।
हो पूरी सबकी आस अगर, तब तुम जानो होली है।
अब तक जो जीते आये हैं, पानी-पानी रट-रट के,
बूझ गई उनकी प्यास अगर, तब तुम जानो होली है।

2
एक दूजे पर रंग लगा दें, आओ मिलकर होली में।
गिले शिकवे दूर भगा दें, आओ मिलकर होली में।
एक बार जो चढ़ जाए, तो जीवन भर फिर न उतरे।
प्यार का ऐसा भाँग पिला दें, आओ मिलकर होली में।

3
जी करता है आज निभा दूँ, सारे वादे होली में।
तू चाहे तो आज बता दूँ, अपने इरादे होली में।
जीवन भर मय पीकर के भी प्यासा हूँ मैं आज प्रिये।
इन मतवाली आँखों से आ, आज पिला दूँ होली में।


1 मार्च 2007

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