बिना टिकट के
गंध लिफ़ाफ़ा
घर-भीतर तक
डाल गया मौसम
रंगों डूबी
दसों दिशाएँ
विजन डुलाने लगी हवाएँ
दुनिया से बेख़ौफ़
हवा में
चुंबन कई
उछाल गया मौसम।
दिन सोने की
सुघर बाँसुरी
लगी फूँकने...फूल-पाँखुरी,
प्यासे अधरों पर ख़ुद
झुककर
भरी सुराही
ढाल गया मौसम।
११ फरवरी २००८
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