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अनुभूति में सुवर्णा दीक्षित की
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किसी के कहने से
जो दुनिया से कहूँ

दोस्तों में भी ये अदा हो कभी
मुहब्बत कुछ नहीं
हर वक्त चाशनी में

गीतों में-
कुछ लम्हों पहले

मुक्तक में-
तीन मुक्तक

  मुहब्बत कुछ नहीं

मुहब्बत कुछ नहीं बस रब की ही सौगात होती है
अकीदत और क्या होती है तेरी बात होती है

ख़ुदाया रोशनी तो कम से कम तक्सीम कर सबको
कहीं सूरज का सजदा है, कहीं पर रात होती है

कभी तो इब्तिदा होने में भी लगते ज़माने हैं
कभी पर्दे के उठते इन्तहां की बात होती है

कहीं फूलों की किस्मत मे कोई तूफाँ नही होता
कहीं गुल खिल नही पाते कली बर्बाद होती है

भँवर वो बारहा जो प्यार की कश्ती डुबोता हैं
कभी कुछ भी नही होता ज़रा सी बात होती है

मेरी तालीम अम्मा की दुआ से कितनी मिलती है
के जब कुछ भी नही होता ये तब भी साथ होती है

१ अक्तूबर २०१२

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