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अनुभूति में दीपिका ओझल की
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काश
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तिमिर को चीर कर
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दीया
मन का मनका
मुश्किल
मैं पगली
सखी

 

चंदा

बचपन ने मेरे जिसको
पाने की ज़िद करी थी
वो चाँद आज मेरी
बदली पे आ गया है

तेरे दीदार की हसरत
लिए वर्षों थी मैं तो जागी
क्यों आज तेरा मिलना
पलकें भिगा गया है?

जिसके लिए मैंने
दिल के दिए थे बाले
वो आके आस के सब
दीपक बुझा गया है
क्यों आज तेरा मिलना
पलकें भिगा गया है?

अभिव्यक्ति समर्पित की
मैंने जिसे अपनी
उँगली के पोरों पे मेरी
गल्ती गिना गया है
क्यों आज तेरा मिलना
पलकें भिगा गया है?

उस ही के लिए मैंने
की थी बुलन्द इतनी
जो आज मेरी हस्ती
खुद ही मिटा गया है
क्यों आज तेरा मिलना
पलकें भिगा गया है?

३१ मार्च २००८

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