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                     अनुभूति में 
                    
                    शांतनु गोयल की रचनाएँ 
                    
                    मुगालते   
                    साक्षात्कार 
                                      
                    
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 साक्षात्कार 
लक्ष्यहीन मैं, पंथहीन मैं 
सत्यहीन मैं, अंतहीन मैं 
अनभिज्ञ मैं। 
आत्मप्रवंचक मैं 
मिथ्यादंभी मैं 
करुणापेक्षी मैं, मुमूर्षु मैं 
महत्वाकांक्षी मैं। 
कस्तूरी ढूँढ़ता, 
ठोकरें खाता 
तृष्णा से भरा, दुख की खोज मैं 
सुखान्वेषी मैं. 
ईश्वर को दुत्कारता, स्वयं को झुठलाता 
स्वयं में अटूट विश्वास लिए 
विश्वासघाती मैं। 
इसी मैं का अनुगामी, इसी मैं से भागता 
जीवन का सत्य जान कर भी 
परम अज्ञानी मैं। 
9  
अप्रैल 
2007 
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